इंदौर के जाने माने शतरंज प्रेमी जे एल सूरी का निधन
मध्य प्रदेश के शतरंज मे हमेशा से इंदौर का एक विशेष स्थान रहा है और किसी भी शहर और नगर के इस तरह से किसी भी खेल मे आगे रहने मे कई लोगो का योगदान होता है ,जो भले ही सामने ना नजर आते हो पर उनकी मौजूदगी खेल की दीवानगी को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का काम करती है ,ऐसे ही एक सज्जन थे जे एल सूरी साहब ,यहाँ साहब शब्द का इस्तेमाल इसीलिए जरूरी है की उन्होने ताउम्र शतरंज से बेइंतेहा मोहब्बत की निधन के पूर्व रात बेटे राजेश के साथ शतरंज खेली और जाने के बाद उनकी तस्वीर के बाजू मे शतरंज का बोर्ड ही नजर आया । 1935 में तब के हिंदुस्तान और आज के पाकिस्तान में उनका जन्म हुआ था और आजादी के बाद वह परिवार के साथ भारत आ गए थे ,वो ना तो शतरंज के बड़े आयोजक थे या संघ के पदाधिकारी थे पर शतरंज के अव्वल दर्जे के प्रेमी थे । पढे इंदौर के जाने माने शतरंज विशेषज्ञ और प्रशिक्षक पीयूष जमीदार का उनके बारे मे लिखे लेख को
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J L सूरी साहब का सोमवार को निधन हो गया .
सूरी साहब 30-32 वर्षों पूर्व ट्रांसफर होकर इंदौर आए थे वो इन्सोरेंस विभाग के शीर्ष अधिकारी थे इंदौर उनकों इतना अच्छा लगा कि उन्होंने रिटायरमेंट केबाद इंदौर में ही मकान खरीद लिया. इंदौर के पूर्व ग्वालियर, जबलपुर भोपाल में भी रह चुके थे वो जिस भी शहर में रहे वहां के शतरंज खिलाड़ियों से उनके घनिष्ठ संबंध रहे जब भी ये खिलाड़ी इंदौर आते या फोन पर बात करते तो सूरी साहब का जरूर पूछते चाहे वो ग्वालियर के नेशनल ए खिलाड़ी एसके राठौर हो स्वर्गीय मिश्राजी हो या जबलपुर के पूर्व राज्य विजेता मनोज मिश्रा हो. सूरी साहब जहा भी रहे उनका घर चेस क्लब हो जाता था .
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1994 में संजय कासलीवाल शतरंज अकादमी की स्थापना हुई थी तब से लेकर लॉक डाउन के पूर्व तक प्रत्येक रविवार को 5 से 7 घंटे तक अकादमी पर शतरंज खेलते थे.वो शतरंज अकादमी के प्रमुख स्तंभ थे. होली रंगपंचमी हो या बारिश, सर्दी या बहुत गर्मी ही क्यों न हो उनका रविवार को अकादमी आना होता ही था. अन्य दिनों में उनके घर खिलाड़ी प्रैक्टिस के लिए जाते थे या वो भाटीजी के घर या उनकी शॉप पर शतरंज खेला करते थे.
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वो चाल चलने में बहुत ही कम समय लेते थे उनकी चालों मे उलझकर 2100 -2200 रेटिंग के खिलाड़ियों को भी उनसे हारते हुए देखा .लगभग 90 वर्ष की आयु में भी शतरंज के प्रति उनका जोश देखते बनता था और वो बिना थके 5-6 घंटे खेल लेते थे. वो ये भी जानते थे कि उम्र के साथ उनकी शातिर चालों की धार कम हो रही थी पर उनका उत्साह कभी भी कम नहीं हुआ.
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टूर्नामेंट के दौरान हाल के कोने में उनकी टेबल लग जाती थी और वो जुनून के साथ खेलने लग जाते थे ,उनकी टेबल के आसपास खिलाङ़ियों का जमघट लग जाता था . रविवार के दिन वो इंदौर के उभरते हुए शातिर खिलाड़ियों के प्रैक्टिस साथी हो जाते थे .
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सूरी साहब एक ईमानदार अधिकारी, विनम्रता के धनी, खुशमिज़ाज और समाज के प्रति पूरी तरह समर्पित थे. उनकी इच्छा के अनुसार उनकी देह को उनके परिवार ने MGM मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया .
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शतरंज के प्रति उनकी दीवानगी का आलम यह रहा की उनके जाने के बाद परिवार नें भी उन्हे कुछ इस तरह सम्मान देना उचित समझा
लेखक

लेख के लेखक पीयूष ज़मींदार
