जन्मदिन विशेष : पूर्व नेशनल चैम्पियन अनुराधा बेनीवाल
उनका सफर एक शतरंज खिलाड़ी के तौर पर शुरू हुआ और राष्ट्रीय सबजूनियर विजेता बनकर उन्होने अपनी प्रतिभा से सभी को परिचित भी कराया ,उनका शतरंज जीवन आगे बढ़ ही रहा था पर वह पढ़ना चाहती थी सो शतरंज से अचानक गायब हो गयी ! आज वह ना लंदन से लेकर भारत में ना सिर्फ शतरंज के प्रचार प्रसार में बेहतरीन भूमिका निभा रही है बल्कि एक शानदार किताब "आजादी मेरा ब्रांड "की लेखिका भी है । हम बात कर रहे है कभी भारत की राष्ट्रीय सब जूनियर चैम्पियन रही अनुराधा बेनीवाल की । वह भारत में बालिकाओं को शतरंज खेल के माध्यम से आत्मनिर्भर और निर्णय लेने काबिल बनाना चाहती है और इसे एक बड़ा बदलाव मानती है । आइये उनके जन्मदिन के खास मौके पर उनसे चेसबेस इंडिया की बातचीत को पढ़ते है ।
शतरंज के माध्यम से भारत के ग्रामीण इलाको में वह शतरंज को लेकर एक बड़ा प्रयास कर रही है पढे चेसबेस इंडिया से उनकी बातचीत
सवाल - आपने शतरंज खेलना कैसे शुरू किया और कैसा रहा आपका शतरंज का सफर ?
अनुराधा - मैं सात साल की थी जब पहली बार शतरंज से मेरा आमना-सामना हुआ। पापा के एक दोस्त बोर्ड-मोहरे ले कर आये थे। बस मुझे पसंद आ गया खेल और समझ भी! बारह साल का सफर रहा लगातार टूर्नामेंट्स खेलने का, घंटो प्रैक्टिस करने का और महीनों-महीनों कॉचिंग कैंपस में रहने का। अंडर 8 से लेकर अंडर 15 तक सारी टूर्नामेंट्स खेली और खूब सारी ओपन-रेटिंग आदि आदि! सब-जूनियर इंडिया चैंपियन बनाना एक बड़ा मोड़ था, खेल की ऊंचाइयां छूने का भी और ऊंचाइयों की असलियत सामने आने का भी। तब लगा के सफलता के माने जरुरी नहीं ख़ुशी या संतोष भी हों। मैं एक के बाद एक टूर्नामेंट और नहीं खेलना चाहती थी और पढाई में मेरी रूचि थी। तो मैंने चैस छोड़ कर कॉलेज चुना। दस साल तक कोई सीरियस टूर्नामेंट नहीं खेली, लेकिन बीच-बीच में बच्चों को शतरंज सिखाती रही।
सवाल -पहले और अब आपके तैयारी करने में क्या अंतर आया है ?
अनुराधा - अब मैं चैस की तैयारी नहीं करती। छः साल पहले जब लंदन आई तो कुछ क्लब टूर्नामेंट्स खेली लेकिन वो भी बिना तैयारी के। कभी कभी कुछ पज़ल्स सॉल्व कर लेती हूँ और कभी कोई टूर्नामेंट के मैचेस फॉलो कर लेती हूँ।
सवाल - किन किताबों और सोफ्टवेयर को आप अपने खेल के लिए महत्वपूर्ण मानती है ?
अनुराधा -मुझे लगता है सब किताबें अच्छी हैं अगर मेहनत की जाए तो। चैस-बेस एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिसके बिना कोई भी सीरियस खिलाड़ी नहीं रह सकता।
अनुराधा चेसबेस 15 को हर सिरियस खिलाड़ी के लिए जरूरी मानती है
सवाल-शतरंज के अलावा आपके कौन कौन से शौक है ?
अनुराधा - मुझे अकेले घूमना पसंद है। मैं अभी तक लगभग पूरा यूरोप और कुछ रूस अकेले देख चुकी हूँ। ये घूमना बिना किसी कारण के होता है, कोई प्रतियोगिता नहीं, कोई काम नहीं, बस घूमने के लिए घूमने की लत है मुझे! इसके अलावा एक किताब भी लिखी जिसका नाम है 'आज़ादी मेरा ब्रांड', जिसे राजकमल ने बड़े प्यार से छापा और जिसे पाठकों का बेशुमार प्यार मिला। मुझे किताबें पढ़ना बेहद पसंद है, मुझे घर पे साबुन और क्रीम्स बनाना पसंद है। मुझे लोगों के बारे में जानना पसंद है, सच में किसी को जान सकना किसी सम्मान से कम नहीं। मुझे खाना बनाना पसंद है और घर साफ़ करना भी। मुझे किताबें लगाना पसंद है और बर्तन साफ़ करना भी। मुझे बच्चों के साथ समय बिताना पसंद है। अगर मैं खुश हूँ तो मुझे लगभग सबकुछ करना पसंद है, कपड़े प्रेस करने के अलावा, वो मुझे नहीं आता!
अनुराधा की लिखी किताब - आजादी मेरा ब्रांड आप यहाँ से ले सकते है
सवाल- आपके प्रिय शतरंज खिलाड़ी कौन है और क्यूँ ?
अनुराधा - विश्वनाथन आनंद और जूडिथ पोल्गर। आनंद की वजह से शतरंज खेला और जूडिथ से हिम्मत मिली।
जूडिथ और आनंद अनुराधा के पसंदीदा खिलाड़ी है , फोटो - RAY MORRIS HILL
सवाल -आपने लंदन मे शतरंज प्रशिक्षण मे काफी काम किया है उस बारे मे कुछ बताए ?
अनुराधा - मेरी लंदन में चैस कोचिंग की कंपनी है, जहाँ दस और कोच काम करते हैं। हम अलग-अलग स्कूलों में चैस सिखाते हैं और क्लब्स चलाते हैं। छः साल में मैं काफ़ी बढियाँ बिगनर कोच बन गयी हूँ! ऐसा मुझे लगता है!
लंदन में अनुराधा को उनकी आदर्श जूडिथ पोलगर से भी मिलने का मौका मिले और ऐसे में उनकी खुशी आप खुद उनके चेहरे पर पढ़ सकते है
सवाल - शतरंज और पारिवारिक जीवन में कैसे आप तालमेल बिठाती है ?
अनुराधा - शतरंज सिखाना मेरा काम है। काम और परिवार मेरे लिए दो अलग-अलग चीजें नहीं हैं। मुझे दोनों में बराबर ख़ुशी मिलती हैं और मैं शायद खुशकिस्मत हूँ के मेरे लिए इन दोनो में तालमेल बिठाने का कोई स्ट्रगल नहीं है, ना कभी रहा।
सवाल - कोई ऐसा मैच जो आप हार रही थी और जीत गयी थी ?तब कैसा महसूस हुआ था ?
अनुराधा - जीत रही थी और हार गयी वाले याद रहते हैं सिर्फ! आपका मन करता हैं के जमीन के अंदर खड्डा खोदें और खुद को दफ़्न कर लें!
सवाल - आपके खेल जीवन से जुड़ा कोई रोचक किस्सा अगर आप बताना चाहे ?
अनुराधा - नेशनल चैंपियन बनने के बाद अगली टूर्नामेंट जो मैंने खेली वो थी वुमनस बी, मैं पहला राउंड एक अनरटेड, अनसीडेड खिलाड़ी से हार गयी। वो हार शायद मेरे जीवन से सबसे दुःखद पलों में से हैं, वो एक जरुरी पल भी था जब पता लगा के जीत परमामेंट नहीं है। और जब तक जीत-हार से आप खुद को अलग नहीं कर पाओगे, खेल में आगे बढ़ पाना मुश्किल होगा। मुझे दुःख और ख़ुशी दोनों ही एक्सट्रीम में होते थे, वो एक अच्छे खिलाड़ी की निशानी नहीं है शायद। मैंने हार और जीत से खुद को अलग़ करने का निर्णय ले लिए। वो निर्णय शायद मेरे जीवन के सबसे बढ़िया निर्णयों में से था।
सवाल - आपका खेला कोई मैच जो हमारे साथ बांटना चाहे ?
अनुराधा - मेरे पास मेरा एक भी मैच नहीं है! एक इंटरनेट से मिला है वो यहाँ अटैच कर रही हूँ।
सवाल - भविष्य में आपके शतरंज को लेकर क्या योजना है ?
अनुराधा - मैं अपने देश की लड़कियों को चैस सिखाना चाहती हूँ। शतरंज को एक खेल की तरह, जीवन की तरह! मुझे लगता है एक ये एक बेहद खास खेल है जो हमें सोचना सिखाता है, सामने वाले खिलाड़ी की इज्ज़त करना सिखाता है, अच्छे और बुरे निर्णय लेना सिखाता है, हार-जीत के बाद आगे फिर से खेलना सिखाता है। जो लड़कियां कभी अपनी मर्जी से घर से बाहर भी नहीं निकल पाती, वो अगर निर्णय लेंगी के उन्हें कब और कैसे अपने मोहरे निकालने हैं, मुझे लगता है शतरंज उनके जीवन में बड़े बदलाव लाने का साधन बन सकता है।
पिछले कुछ वर्षो से अनुराधा लगातार बालिका शतरंज के लिए शानदार काम कर रही है
सवाल -आपके खेल जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या लगती है ?
अनुराधा - मैं आज भारत के अलग-अलग गाओं में जाकर स्कूलों में शतरंज सिखा सकती हूँ। लोग मुझे रहने, खाने को जगह देते हैं, बच्चे अपना समय देते हैं और गांव वाले इज्जत। मुझे इतना मज़ा आता है और इतना कुछ सीखने को मिलता है। मुझे लगता है ये मेरे खेल और जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
सवाल - आप हमेशा सामाजिक विषयों पर अपनी राय रखती रहती है वर्तमान कोरोना वाइरस से पैदा हुई स्थिति पर क्या कहना है और आप इस समय को कैसे व्यतीत कर रही है ?
अनुराधा - ये समय है जब इंसानो/सरकारों/फ़ैक्टरिओं/कंपनियों को सोचने की जरूरत है, बदलने की जरुरत है। हम गैर जरुरी चीजें बनाते जा रहे हैं, खरीदते जा रहे हैं, इक्कठा करते जा रहे हैं, धरती को लाद दिया है हमने बेकार की गैर जरुरी चीजों से। इस समय को शायद हम इस्तेमाल कर सकते हैं ये सोचने में के क्या जरुरी है और क्या नहीं। सिर्फ चीजें ही नहीं जीवन में भी। जीवन परमानेंट नहीं है, हम सब-कुछ नहीं हैं, तो हम जब तक इस ग्रह पर हैं वो करें जो हमें ख़ुशी देता हैं। वो चीजें कर भर पाना जो आपको ख़ुशी देती हैं एक बड़ा प्रिविलेज है। मैं ढेरों नयी चीजें सीख रही हूँ। खूब सारा पढ़ रही हूँ और खाना बना रही हूँ। हज़ारों बर्तन साफ़ कर रही हूँ! अपने दोस्तों और घर वालों से बाते कर रहीं हूँ, और मना रहीं हूँ ये जल्दी ख़त्म हो और मैं भारत वापस आ सकूँ।
शतरंज खिलाड़ी ,प्रशिक्षक ,लेखक और समाजसेवी अनुराधा के जन्मदिन पर चेसबेस इंडिया उन्हे शुभकामनाए देता है और उम्मीद करता है की वह यूं ही प्रगतिपथ में अग्रसर रहेंगी । उम्मीद है आपको यह लेख पसंद आया होगा हमें ईमेल करे - chessbaseindiahindi@gmail.com